हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार गंगा के दोनों ओर स्थित बिहार के 15 जिलों के भूजल में आर्सेनिक के स्तर में खतरनाक बढ़ोतरी हुई है, जिसके कारण इस इलाके में रहने वालों के लिये कैंसर का खतरा बढ़ गया है। IANS की रिपोर्ट के मुताबिक गंगा किनारे के दोनों तरफ़ के 57 विकासखण्डों के भूजल में आर्सेनिक की भारी मात्रा पाई गई है। आर्सेनिक नामक धीमे ज़हर के कारण लीवर, किडनी के कैंसर और “गैंगरीन” जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के एक अधिकारी के अनुसार सर्वाधिक खराब स्थिति भोजपुर, बक्सर, वैशाली, भागलपुर, समस्तीपुर, खगड़िया, कटिहार, छपरा, मुंगेर और दरभंगा जिलों में है। समस्तीपुर के एक गाँव हराइल छापर में भूजल के एक नमूने में आर्सेनिक की मात्रा 2100 ppb पाई गई जो कि सर्वाधिक है। जिला प्रशासन द्वारा किये गये एक सर्वे के मुताबिक 80 मीटर से अधिक गहरे बोरिंग में आर्सेनिक की मात्रा नहीं पाई गई। उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पेयजल में 10 ppb की मानक मात्रा तय की है जबकि भारत सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार अधिकतम सुरक्षित मात्रा 50 ppb मानी जाती है।
गत वर्ष राज्य शासन की पहल पर 398 गाँवों में 19961 ट्यूबवेल के भूजल के नमूनों में कराये गये एक सर्वे के मुताबिक 310 गाँवों में विभिन्न जलस्रोतों में आर्सेनिक का स्तर 10 ppb से अधिक तथा 235 गाँवों में 50 ppb से अधिक पाया गया। स्थिति को देखते हुए जल संसाधन मंत्रालय ने इसकी रोकथाम के लिये विभिन्न कदम उठाये हैं। मंत्रालय में पदस्थ सचिव यूएन पंजियार कहते हैं कि इस इलाके में बढ़ता भूजल प्रदूषण और आर्सेनिक का स्तर वाकई चिंता का विषय है। पटना में आयोजित एक क्षेत्रीय वर्कशॉप “जियोजेनिक कंटामिनेशन ऑफ़ ग्राउण्डवाटर एंड आर्टिफ़िशियल रीचार्ज” में भाग लेने आये श्री पंजियार ने बताया कि आर्सेनिक के अलावा प्रदेश के नौ जिलों में भूजल फ़्लोराइड से भी प्रदूषित पाया गया है। इसी प्रकार राज्य सरकार ने मंत्रालय को बताया है कि नौ अन्य जिले नाइट्रेट से जबकि 20 जिले आयरन प्रदूषण से ग्रस्त पाये गये हैं, और इसके लिये व्यापक कदम उठाये जा रहे हैं।
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अनुवाद – सुरेश चिपलूनकर