प्रयागराज में गंगा को प्रदूषित करने में आधा दर्जन प्रमुख उद्योगों तथा शहर के सीवेज और नालों की भूमिका है। इन नालों और सीवेज के साथ अनेक छोटे औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का दूषित उत्प्रवाह भी जाता है।
कुंभ के पहले तक प्रयाग में गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की घोषणाओं के बावजूद प्रयागराज में गंगा-यमुना अभी तक प्रदूषण मुक्त नहीं हो सकीं। प्रयागराज पश्चिमी क्षेत्र के विधायक गोपाल दास यादव रसायन विभाग से एमएससी होने के कारण स्वयं पानी की जांच कर लेते हैं।
श्री यादव तथा शहर के दूसरे विधायक अनग्रह नारायण सिंह ने कुंभ के दौरान प्रयागराज में और फिर विधानसभा अधिवेशन के समय लखनऊ में गंगा प्रदूषण के खिलाफ संघर्ष किया।
श्री यादव का कहना है कि कुंभ के दौरान भी रसूलाबाद घाट पर घुलित ऑक्सीजन एक मि.ग्रा. प्रति लीटर से भी कम थी। उनका कहना है कि कुंभ के दौरान प्रयागराज के तीन बड़े नालों मोरीगेट, चाचर नाला और घाघर नाला का पानी पंप करके मवैया ले जाकर निचली धारा में गिराया जाता था। पर अब कुंभ के बाद ये नाले पुनः गंगा और यमुना में खोल दिये गये हैं।
यमुना का अध्ययन करते समय प्रयागराज में नदी में गिरने वाली गंदगी का विवरण दिया जा चुका है। पर चूंकि कुछ ही दूर में वह अपनी यह गंदगी लेकर संगम में गंगा से मिल जाती है इसलिए यहां भी उसका उल्लेख अनिवार्य है। दोनों नदियों में शहरी प्रदूषण के स्रोत 13 बड़े नाले हैं। इनमें से नैनी औद्योगिक क्षेत्र का उत्प्रवाह लाने वाला मवैया नाला संगम से चार कि.मी. नीचे मिलता है। प्रयागराज में गंगा में सबसे पहले जी फलैना लाइट इंडस्ट्रीज का कचड़ा गंगा में गिरता है। 1050 किली प्रतिदिन उत्प्रवाह गिराने वाले इस उद्योग समूह में ट्रीटमेंट प्लांट होने के बावजूद इसमें मौजूदा क्रोमियम तथा निकिल अत्यंत हानिकारक होता है।
शहर का एक अन्य प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र तेलियरगंज के पास है। इसमें केमिकल एवं दवा उद्योग प्रमुख हैं। गोविंदपुर, मेंहदौरी, मम्फोर्डगंज, बेलीरोड, अशोकनगर, राजापुर आदि मोहल्लों में पिछले एक दशक में तेजी से बनी कॉलोनियों का गंदा पानी भी रसूलाबाद घाट से ऊपर और नीचे गिरता है। इसलिए रसूलाबाद में प्रायः घुलित ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम रहती है। टी.बी. अस्पताल की अत्यंत हानिकारक गंदगी जिसमें विषाणु युक्त बलगम शामिल है। गंगा में गिरायी जाती है। प्रयागराज कैंटोनमेंट क्षेत्र की सारी गंदगी भी नालों से गंगा में जाती है।
आगे चलकर सलोरी, एलनगंज, दारागंज नाले हैं और मोरीगेट नाला तो ठीक संगम में मिलकर जैसे त्रिवेणी की कमी पूरा करता हो। उधर यमुना धाधर नाला और चाचर नाला की गंदगी बलुवाघाट से पहले पा लेती हैं। कार्तिक के महीने में व्रत रखने वाली महिलाएं इस घाट पर स्नान करती हैं तो इन नालों की गंदगी उनके बालों में लिपट जाती है, जिसे साफ करने के लिए उन्हें फिर से घर में बाल धुलने पड़ते हैं। यमुना में भी संगम से ठीक पहले किला नाला गिरता है।
इन सब नालों से अनुमानतः 99 करोड़ लीटर से अधिक मलजल प्रतिदिन गंगा में गिरता है। गनीमत सिर्फ यह है कि दो नदियों के मिलाप, विशेषकर यमुना में संगम से आगे बढ़ने पर गंगा में पानी का बहाव अच्छा रहता है।
प्रयागराज में डोडी और नैनी में दो सीवेज फार्म काफी पहले बनाये गये थे। कुंभ के दौरान संगम को साफ रखने के लिए धाधरा नाला, चाचर नाला, मम्फोर्डगंज, दारागंज तथा मोरीगेट नालों का मलजल सीवर लाइन में छोड़कर नैनी और डांडी भेजने की योजना थी। पर यह पूरी तरह कामयाब नहीं रही और मेला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी ने बातचीत में स्वीकार किया कि यह गंदगी संगम से आगे निचली धारा में डाल दी जाती थी। नैनी में 6 करोड़ लीटर मलजल प्रतिदिन साफ करने का संयंत्र लगाने की योजना है और उसके पूरा होने पर भी पांच करोड़ ली. मलजल गंगा में ही जायेगा।
संगम से आगे चलकर नैनी उद्योग क्षेत्र वैद्यनाथ आयुर्वेदिक दवा कारखाने के अलावा चार बड़े कारखानों की गंदगी गंगा में आती है। स्वदेशी काटन मिल्स रोजाना जो 400 किली. गंदगी गंगा में गिराती है, उनमें क्लोराइडस और बीओडी की अधिकता के अलावा एसएस सायनाइड, त्रिवेणी स्ट्रक्चरल लि. 1675 कि.ली. प्रतिदिन के उत्प्रवाह में जिंक, भारत पम्पस ऐंड कंप्रेशर्स 2000 किली. की गंदगी में बीओडी की अधिकता के अलावा तेल, ग्रीस, इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज की गंदगी में 2200 कि.ली. रोज बी.ओ.डी., सी.ओ.डी., की अधिकता के अतिरिक्त क्रोमियम तथा एम. एस. सायनाइड जैसी घातक धातुएं होती हैं।
प्रयागराज शहर से आगे निकलकर गंगा दूसरों के दिये इस ढेर से पाप से मैली हुई अपनी काया, को सूरज की किरणों तथा बालूकणों की मदद से साफ करने की कोशिश करती है। पर 25 कि.मी. दूर फूलपुर में उन्हें पुनः जहर भेंट चढ़ाया जाता है।
प्रयागराज शहर के पहले गिनाये गये पांच बड़े उद्योग कुल मिलाकर जितनी गंदगी गंगा में गिराते हैं उसके लगभग दो गुनी 12072 किली. मेसर्स इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कारपोरेशन लि. फूलपुर द्वारा गिरायी जाती है। इस कारखानों में ट्रीटमेंट प्लांट हैं। इफको के नदी में गिरने वाले उत्प्रवाह में तेल, ग्रीस, सस्पेंडेड सोलिडस तथा अमोनिकल नाइट्रोजन रहता है।
सेंट्रल इनलैण्ड, फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट, प्रयागराज ने 1982 में प्रकाशित अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि इफको की गंदगी 300 मी. की दूरी तक गंगा को अत्यधिक प्रदूषित कर देती है। इस गंदगी से जलीय वनस्पति और जीव-जन्तु दोंनों को खतरा है।
स्पष्ट है कि प्रयागराज में रसूलाबाद से लेकर फूलपुर तक तो गंगा अत्यधिक प्रदूषित रहती है। यह प्रदूषण गंगा की मछलियों और उनके भोजन के काम आने वाली वनस्पति के लिए धीमे जहर का काम कर रहा है। यानी मनुष्यों के लिए भी हानिकारक हो जाती हैं।
तीर्थ क्षेत्र होने के कारण संगम के आसपास मछलियों का शिकार आमतौर पर नहीं होता। पर धारा के ऊपर और नीचे मछली के सहारे जिन्दगी बिताने वाले मछुवारे अब नगर के बढ़ते औद्योगीकरण तथा व्यवसायीकरण की मार झेल रहे हैं।
मछुआरों के जो बच्चे बचपन से ही नदी में मछलियों का शिकार खेलते थे, अब वे तीर्थयात्रियों द्वारा फेंका जाने वाला पैसा बटोरने के लिए ठंडे पानी में ठिठुरते रहते हैं। रेजगारी की किल्लत ने इस धंधे में भी बहुत गुंजाइश नहीं छोड़ी।
फर्रुखाबाद और फतेहगढ़ आसपास बसे दो ऐसे शहर हैं जिनकी नगरपालिका एक ही है। यह शहर सिल्क तथा सूती साड़ियां, रजाई की खोल की रंगाई और छपाई के लिए मशहूर हैं, जैसे कि यमुना के किनारे मथुरा, गंगा फतेहगढ़ के पूर्वी से सटकर बहती है, जबकि फर्रुखाबाद से चार कि.मी. दूर है। दोनों ही शहरों में सीवर लाइनें नहीं हैं। 1977-78 में फर्रुखाबाद से रोजाना 22 लाख लीटर स्लज, सीवेज गंगा में जाता है। जिसका बीओडी. भार प्रतिदिन 440 किग्रा. है।
फतेहगढ़ में भी तीन नाले गंगा में रोज 17.5 लाख लीटर गंदगी गिराकर 350 किग्रा. प्रतिदिन बी.ओ.डी. भार डालते हैं।
नालों की इस गंदगी से गंगा तो प्रदूषित होती है। शहर में मच्छरों तथा मक्खियों की भरमार से अनेक बीमारियां भी फैल रही हैं।
शहर में गंगा को प्रदूषित करने का दूसरा स्रोत छपाई और रंगाई के कुटीर उद्योग हैं। यह गंदगी नालों के जरिये और कभी-कभी सीधे जाती है। लाशों का फेंका जाना प्रदूषण का अतिरिक्त स्रोत है।
दोंनों शहरों की इस गंदगी के कारण कचला ब्रिज कन्नौज में गंगा जल काफी अशुद्ध हुआ मिलता है।
गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित उन्नाव शहर के चमड़ा कारखानों ने तो गंगा को प्रदूषित करने के साथ ही पचासों गांवों में सतह तथा भूमिगत जल के प्रदूषण से अनेक घातक बीमारियां पैदा कर दी हैं। चमड़ा कारखानों का यह उत्प्रवाह मिट्टी को ऊसर बना रहा है। और खड़ी फसल जला देता है। बरसात में यह पानी नालों से निकलकर घरों के अन्दर घुसता है। गंगा प्रदूषण अभियान के अंतर्गत उत्तर प्रदेश के चिन्हित 34 बड़े उद्योगों में से एक मेसर्स करमचंद थापर ब्रदर्स उन्नाव की है।
उन्नाव शहर के पहले बने नये लेदर काम्पलेक्स का कचड़ा तो लोनी ड्रेन से होकर सई में होते हुए वाराणसी के पास गंगा में पहुंचता है। लेकिन उन्नाव शहर से पुराने गंगा पुल की ओर जाते समय जो अनेक चमड़ा कारखाने हैं, उनका पानी हाल ही तक सीधे गंगा में जाता था। हाल ही में यह नाले गंगा में गिरने से रोक दिये गये हैं। पर अब ये चंद्रशेखर आजाद मार्ग के किनारे-किनारे सड़क नालों से होकर लखनऊ-कानपुर मार्ग पर बने नये पुल से पहले दूर-दूर तक फैलकर भयंकर दुर्गंध करता है।
पोनी पीपर खेड़ा जूनियर हाईस्कूल के चारों ओर यह गंदा और बदबूदार पानी भरा रहता है। स्कूल के बच्चों ने बताया कि जब से चमड़ा कारखानों का यह पानी इधर से बहना शुरू हुआ है, जमीन खराब होकर ऊसर हो रही है। आस-पास के गांवों में बड़े-बड़े मच्छर हो गये हैं। बरसात में यह पानी खेत, घर, तालाब और कुओं में पहुंचता है। स्कूल के बच्चों ने बताया कि चमड़ा कारखानों का पानी आने से नाले और तालाबों की मछलियां मर रही हैं। भूमिगत जल प्रदूषित हो गया है। एक खास बात यह देखी गयी कि यहां लोगों के पैर लुंज-पुंज हो जाते हैं।
बड़े पैमाने पर इस बीमारी की शिकायत के बाद शासन ने जल निगम के जरिये पानी की एक बड़ी टंकी बनवायी है। मच्छरों से मलेरिया, फाइलेरिया तो होता ही है, शरीर में जिस जगह ये काटते हैं, वहां पक भी जाता है। बच्चों ने बताया कि कई गांवों में टीवी. का रोग फैल रहा है। पीड़ित गांवों में पोनी, धोधीं, महदिनवा, रेवतापुर, निहाल खेड़ा, भिटवा, पीपर खेड़ा, जालिमखेड़ा और बंथर प्रमुख हैं।
यह शोध चार भागों में है, इसमें उत्तर प्रदेश में बहने वाली गंगा का एक वृहद अध्ययन किया गया है -
1- संदर्भ गंगा: गंगा में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 1)
2 - संदर्भ गंगा : कानपुर गंगा में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 2)
3 - संदर्भ गंगा : प्रयागराज गंगा में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 3)