मूल भंडारे और चिन्ताहरण भंडारे का पानी, आपस में मिलने के बाद, खूनी भंडारे की ओर जाता है। खूनी भंडारे में जमा पानी जाली करंज में जमा होता है। जाली करंज में पहुँचने के पहले, उसमें सुख भंडारे से बहकर आने वाला पानी मिलता है। ग़ौरतलब है कि सभी भंडारों का पानी, गुरुत्व बल की मदद से प्रवाहित हो जाली करंज में जमा होता है। जाली करंज मुख्य स्टोरेज टैंक है। इससे पानी का वितरण किया जाता है। मुगलकाल में जाली करंज में जमा पानी को मिट्टी के पाइपों की मदद से बुरहानपुर नगर के विभिन्न इलाकों में पहुँचाया जाता था। इस अध्याय में मुगलकाल में बनी, बुरहानपुर शहर को स्वच्छ और निरापद पानी देने वाली कनात प्रणाली का विवरण दिया गया है। यह प्रणाली, भूमिगत जल के दोहन पर आधारित और मध्य प्रदेश में पाई जाने वाली एकमात्र विरासत है। यह विरासत कई मायनों में बेजोड़ है। इसकी कहानी बुरहानपुर नगर के इतिहास से प्रारम्भ हो प्रणाली के विभिन्न पक्षों पर खत्म होती है।
कहानी के अन्तिम भाग में दिया विवरण, काफी हद तक उसके निर्माण की गुत्थी को सुलझाता है। विदित हो, बूँदों की इस विरासत ने बुरहानपुर नगर और तत्कालीन मुगल छावनी की पेयजल आवश्यकता की न केवल पूर्ति की थी वरन उसे निरापद भी बनाया था। इस अध्याय में दिया संक्षिप्त विवरण मुगलकालीन प्रणाली के पीछे छुपे किन्तु आयातित भूजल विज्ञान को समझने के लिये दृष्टिबोध प्रदान करता है।
बुरहानपुर नगर, मध्य प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम में मुम्बई-इलाहाबाद रेल मार्ग पर स्थित है। इसे खानदेश के पहले स्वतंत्र शासक नासिर खान फारूखी ने बसाया था और इसका नाम प्रसिद्ध सनत शेख बुरहानुद्दीन दौलताबादी के नाम पर रखा गया था। सन 1600 में मुगलों ने खानदेश पर कब्ज़ा कर बुरहानपुर को उसकी राजधानी बनाया था।
मुगलकाल में यह नगर, सूरत होकर उत्तर की ओर जाने वाले व्यापारिक मार्ग पर स्थित होने के कारण व्यापारिक गतिविधियों का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। इसके अतिरिक्त, मुगल साम्राज्य की दक्षिणी सीमा पर स्थित होने के कारण इसका सामरिक महत्त्व था। मुगलकाल में यहाँ दो लाख सैनिकों की छावनी थी।
बुरहानपुर नगर, वर्तमान मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई कस्बे से निकलकर पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होने वाली ताप्ती नदी के तट पर बसा है। विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरणों से पता चलता है कि पुराने समय में ताप्ती नदी का पानी साफ नहीं था। ताप्ती नदी के कगार काफी ऊँचे थे इसलिये उसके पानी को ऊपर चढ़ाकर, बुरहानपुर नगर तथा बहादुरपुर स्थित सैनिक छावनी की आवश्यकताओं को पूरा करना कठिन तथा महंगा था।
गुजरात, मालवा, अहमदनगर तथा दक्कन जैसे शत्रु राज्यों से घिरा होने के कारण बुरहानपुर नगर काफी असुरक्षित था। असुरक्षा की भावना के कारण बुरहानपुर के शासकों को हमेशा डर बना रहता था कि यदि दुश्मनों ने ताप्ती नदी के पानी में जहर मिला दिया तो परिणाम अत्यन्त घातक होंगे। इस सम्भावित खतरे से बचने के लिये बुरहानपुर के मुगल शासकों ने ऐसी स्वतंत्र जल प्रणाली के बारे में सोचा जो पर्याप्त जल उपलब्ध कराने के साथ-साथ सुरक्षित तथा ताप्ती नदी के पानी पर आश्रित नहीं हो।
अब्दुल रहीम खानखाना खानदेश के सूबेदार थे। उन्होंने बुरहानपुर नगर और सैनिक छावनी की जल समस्या को स्थायी रूप से हल करने के लिये ईरान (फारस) में प्रचलित कनात (भूुमिगत सुरंग) प्रणाली को अपनाने का निर्णय लिया। इस प्रणाली के अन्तर्गत, ऊँचाई पर स्थित भूभाग में मिलने वाले भूमिगत जल को भूमिगत सुरंग के मार्फत, निचले स्थानों पर, पहुँचाया जाता है। यह प्रणाली गुरुत्व बल के सिद्धान्त पर काम करती है। कनात प्रणाली की निर्माण अवधि लम्बी निर्माण कष्ट साध्य तथा महंगा है पर उसका रखरखाव तथा संचालन व्यय बहुत कम है। यह प्रणाली सामान्यतः प्रदूषण रहित है।
भारत का परम्परागत जल विज्ञान (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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