कृषि

केंचुआ पालन और वर्मी कम्पोस्ट (Earthworm Manure and VermiCompost System)

विजय चितौरी

मिट्टी की उर्वरता में जिस एक जीव की सर्वाधिक भूमिका होती है, वह केंचुआ है। इसकी खूबियों के कारण ही इसे प्रकृति का हलवाहा कहा जाता है। ये केंचुए पौधों के जड़, पत्ती, तने एवं खेत के अन्य कार्बनिक पदार्थों को विघटित करके उसे कीमती खाद में परिवर्तित कर देते हैं। केंचुओं द्वारा तैयार यह खाद ‘वर्मी कम्पोस्ट’ कहलाती है।

उक्त के अतिरिक्त केंचुए मिट्टी को पलटकर उसमें वायु संचार तथा उसकी जल अवशोषण क्षमता को बढ़ाते हैं। केंचुओं से युक्त मिट्टी वर्षाजल को 120 मिली. प्रति घंटे की दर से ही अवशोषित करती है। केंचुओं वाली मिट्टी वर्षाजल को मात्र 10 मिली. प्रति घंटे की दर से ही अवशोषित करती है। केंचुए अपने मल को मिट्टी की ऊपरी सतह पर छोड़ते हैं। इसमें पैराट्रापिक झिल्ली होती है जो जमीन में धूल के कणों से चिपक कर मिट्टी की ऊपरी सतह को ढकती है जिससे मिट्टी का वाष्पीकरण रुकता है। इससे सूर्य की किरणों द्वारा होने वाली मिट्टी की जलहानि में कमी आती है। इस प्रकार केंचुए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सिंचाई, जल की मांग को घटाते हुए जल संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

केंचुआ पालन

हमारे देश में सन 1970 के दशक से हरित क्रांति की शुरुआत के साथ ही मिट्टी में उर्वरकों का उपयोग प्रारंभ हुआ। अधिक से अधिक पैदावार लेने के लिये उर्वरकों का इस्तेमाल लगातार बढ़ाया गया। इन रासायनिक खादों के इस्तेमाल का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हुआ कि मिट्टी बेजान होती गयी। इस मिट्टी से उपजाये गये अनाज, फल और सब्ज़ियाँ बेस्वाद हो गये हैं। इनकी पौष्टिकता घट गयी है। इनके लगातार इस्तेमाल से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घट गयी है। फलत: आज आदमी तमाम तरह की बीमारियों की चपेट में आ गया है।

इन स्थितियों को देखते हुए वैज्ञानिकों का ध्यान एक नन्हें से प्राणी केंचुए की ओर गया। वैज्ञानिकों को आशा की किरण दिखायी दी कि यदि व्यापक पैमाने पर केंचुआ पालन किया जाये और केंचुए की खाद (वर्मी कम्पोस्ट) का इस्तेमाल किया जाये तो बिगड़ी हुई मिट्टी की सेहत सुधारी जा सकती है। इन्हीं स्थितियों के बीच केंचुआ पालन की योजनाएं बनायी गयीं।

केंचुए को अंग्रेजी में ‘अर्थ वर्म’ (Earth Worm) कहते हैं। पूरे विश्व में इसकी करीब 700 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इन्हें मोटे तौर पर तीन भागों में बाँट सकते हैं-

1. एपीजीइक - वे केंचुए हैं जो भूमि के सतह पर रहते हैं।
2. एनीसिक - ये भूमि के मध्य सतह में रहते हैं।
3. एण्डोजीइक - यह जमीन की गहरी सतह में रहते हैं।

भारतीय परिस्थितियों में वर्मी कम्पोस्ट के लिये दो किस्में सर्वोत्तम पाई गयी हैं -

1. आइसीनिया फोटिडा
2. यूडिलस यूजिनी

आइसीनिया फोटिडा को रेड वर्म भी कहते हैं। उत्तर भारत में ज्यादातर इसे ही पाला जाता है। यह लाल भूरे या बैंगनी रंग का होता है। इसकी उत्पादन क्षमता काफी अधिक तथा रख-रखाव आसान होता है। यूडिलस यूजिनी का उपयोग दक्षिण भारत में ज्यादा होता है। कम तापमान के साथ-साथ यह उच्च तापमान भी सहन कर सकता है।
 

वर्मी कम्पोस्ट तैयार करना

वर्मी कम्पोस्ट किसी भी छायादार स्थान पर तैयार किया जा सकता है। यह स्थान ऐसा हो जहाँ पानी न एकत्र होता हो। वर्षा में इस स्थान पर छप्पर आदि डालना जरूरी होता है ताकि केंचुओं को पानी की अधिकता में दिक्कत न हो।

केचुएं से बना खाद

वर्मी कम्पोस्ट से लाभ

1. इसके उपयोग से मिट्टी में लाभदायक सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ जाती है।
2. वर्मी कम्पोस्ट के पोषक तत्व पौधों को आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
3. मिट्टी के जीवांश (ह्यूमस) में वृद्धि से मिट्टी की संरचना, वायु संचार तथा जल धारण क्षमता बढ़ जाती है।
4. इससे कृषि उत्पादों की गुणवत्ता तथा स्वाद भी बढ़ जाता है।
 

वर्मी कम्पोस्ट में पोषक तत्व

अध्ययनों से पता चला है कि वर्मीकम्पोस्ट में पोषक तत्व साधारण गोबर खाद की तुलना में अधिक होते हैं। साथ ही पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला एंटीबायोटिक जो एक्टिनोमाइसिटीस से प्राप्त होता है, इस खाद में आठ गुना ज्यादा मात्रा में पाया जाता है।
 

वर्मी कम्पोस्ट में पोषक तत्व

पोषक तत्व

साधारण गोबर खाद में (प्रतिशत मात्र)

वर्मीकम्पोस्ट में (प्रतिशत मात्र)

नाइट्रोजन

0.8

2.00

फास्‍फोरस

0.05

1.02

पोटाश

1.00

1.00

सल्‍फर

1.00

0.04

कैल्सियम

---

1.5 (PPM)

मैग्‍नीशियम

---

1.5 (PPM)

मॉलिब्डेनम

---

1.0 (PPM)

बोरान

---

2.34

जिंक

---

10.60

लोहा

---

4.65

कॉपर

2.33

---

मैंग्‍नीज

---

0.20

वर्मी कम्‍पोस्‍ट प्रयोग की मात्रा

फसल का नाम

वर्मी कम्‍पोस्‍ट (प्रति टन में)

एकड़

 

दलहनी एवं खाद्यान्‍न फसल

2 टन बुवाई-रोपाई से पूर्व

तिलहनी फसल

3 टन बुवाई से पूर्व

मसाला एवं सब्‍जी फसल

4 टन रोपाई से पूर्व

फूल वाली फसल

फलदार पौधों में रोपण के समय

5 टन पौध रोपण से पूर्व

5 किग्रा./वृक्ष

गमलों में

मिट्टी के भार का 10 प्रतिशत

सावधानियाँ

1. प्रति सप्ताह बेड को एक बार हाथ से पलट देना चाहिए ताकि गोबर पलट जाये और वायु का संचार हो और बेड में गर्मी न बढ़ने पाये।

2. कभी भी ताजा गोबर न प्रयोग किया जाय क्योंकि ताजा गोबर गर्म होता है, इससे केंचुए मर सकते हैं।

3. बेड में सदैव 35-50 प्रतिशत नमी बनाये रखी जाये। इसके लिये मौसम के अनुसार समय-समय पर पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए। वर्षा ऋतु में दूसरे-तीसरे दिन पानी का छिड़काव एवं ग्रीष्म ऋतु में रोजाना पानी छिड़कना चाहिए।

4. सांप, मेढ़क, छिपकली से बचाव हेतु मुर्गा जाली प्लेटफार्म के चारों ओर लगानी चाहिए। दीमक, चींटी से बचाव हेतु प्लेटफार्म के चारो तरफ नीम का काढ़ा प्रयोग करते रहना चाहिए।

5. बेड का तापमान 8 से 30 डिग्री सेग्रे. से कम ज्यादा न होने दिया जाय, 15 से 25 डिग्री सेग्रे. तापमान पर यह सर्वाधिक क्रियाशील रहते हैं तथा खाद शीघ्र बनती है।

6. हवा का संचार पर्याप्त बना रहे किंतु रोशनी कम से कम रहे इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

वर्तमान परिस्थितियों में जब रासायनिक खादों का दुष्प्रभाव स्पष्ट हो गया है और इनकी उपलब्धता भी सुनिश्चित नहीं है तब वर्मी कम्पोस्ट किसानों के लिये आशा की एक किरण हैं। इसका उत्पादन करके किसान अपनी मिट्टी की उर्वरता तो कायम रखेंगे ही साथ-साथ वे अपना धन भी बचा सकेंगे।
 

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