आस्‍था तो आस्‍था है, पानी चाहे गंदा हो या ज़हरीला, पूजा-पाठ की परंपरा को निभाने छठ व्रतियों का मेला हर साल यमुना के घाटों पर लग ही जाता है। स्रोत: जागरण
लोक संस्कृति

छठ पर्व पर लीपापोती: पूजा के लिए कितना सुरक्षित है दिल्ली में यमुना का पानी?

पूजा के दिन यमुना को स्‍वच्‍छ दिखाने के लिए बायो-डिटर्जेंट से झाग खत्‍म करने की कवायद और नहर का पानी छोड़ कर नदी का प्रवाह बढ़ाने की कोशिशों पर उठ रहे सवाल, स्‍थायी समाधानों की है सख्‍त ज़रूरत

Author : कौस्‍तुभ उपाध्‍याय

करोड़ों लोगों की आस्‍था के पर्व छठ पर देश की राजधानी में यमुना की बदहाली का मुद्दा एक बार फिर से सुर्खियों में है। भयंकर प्रदूषण से जूझ रही यमुना के पानी को किसी भी तरह अर्घ्‍य देने लायक बनाने के लिए केंद्र, दिल्‍ली और हरियाणा सरकार की ओर से की गई तैयारियों से छठ व्रतियों को कुछ फौरी राहत मिलने की उम्‍मीद है। पर, तुरत-फुरत में उठाए गए इन कदमों के सही या गलत होने से लेकर इनके औचित्‍य और दीर्घकालिक असर तक पर सवाल उठने भी शुरू हो गए हैं। 

यमुना में बायो-डिटर्जेंट डाल कर पानी में उठने वाले झाग को कम करने के जो प्रयास सरकार की ओर से किए जा रहे हैं, उसे बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के सियासी संदर्भों से जोड़ कर सरकारी लीपा-पोती की एक क़वायद के तौर पर भी देखा जा रहा है। कहा यह भी उठाया जा रहा है कि जहरीले रसायनों के चलते यमुना के पानी में बनने वाले झाग को बैठा देने से ऊपरी तौर पर थोड़ा-बहुत सुधार भले नज़र आ सकता है, पर इससे पानी की विषाक्‍ता (टॉक्सिसिटी) में कोई कमी नहीं आने वाली, क्‍योंकि यह तत्‍व नदी के तल में बैठकर भी अपना प्रतिकूल असर तो दिखाते ही रहेंगे और यमुना का पानी ज़हरीला बना रहेगा। 

इन बातों कि पुष्टि खुद दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की रिपोर्ट से होती है। ज़ी न्‍यूज़ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि  9 अक्टूबर 2025 को लिए गए नमूनों के परीक्षण पर आधारित डीपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार यमुना नदी के अधिकांश हिस्से नहाने लायक नहीं हैं।

दिल्‍ली में कई जगह औद्योगिक रसायनों के कारण यमुना के पानी में हर ओर झाग तैरता दिखाई देता है, जिसे छठ पर जैसे-तैसे बायो-कैमिकल छिड़काव से बैठाने की जुगत की जाती है। यह बीते वर्ष का एक नज़ारा है।

चिंतित करने वाली है डीपीसीसी की रिपोर्ट

23 अक्‍तूबर को जारी की गई डीपीसीसी की रिपोर्ट के हवाले से प्रकाशित उपरोक्‍त मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यमुना से लिए गए पानी के नमूनों की जांच में पाया गया कि नदी का पानी में प्रदूषण का स्‍तर अब भी बहुत अधिक है। रिपोर्ट बताती है कि आईटीओ, निजामुद्दीन ब्रिज और ओखला बैराज पर बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी), केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी)  और फीकल कोलीफॉर्म यानी मलजनित जीवाणुओं का स्तर तय मानकों से कई गुना ज्यादा है। 

रिपोर्ट के मुताबिक सबसे खराब स्थिति कश्‍मीरी गेट स्थित अंतरराज्‍यीय बस अड्डे (आईएसबीटी) के पुल के पास और असगरपुर (शाहदरा व तुगलकाबाद ड्रेन के बाद) में दर्ज की गई। यहां घुलित ऑक्सीजन (डीओ) स्तर लगभग 0 और फीकल कोलीफॉर्म 11,000 एमपीएन /100मिली. तक पहुंच गया। यहां डीओ का मतलब पानी में घुली हुई वह ऑक्सीजन की मात्रा से है, जो जलीय जीवों के सांस लेने और जीवित रहने के लिए ज़रूरी है। 

डीओ की स्तरबहुत कम (या शून्य) होने का अर्थ है कि पानी में जीवन लगभग समाप्त हो चुका है। इसी तरह एमपीएन यानी मोस्‍ट प्रॉबेबल नंबर का अर्थ पानी में मौजूद मलजनित जीवाणुओं की संभावित संख्या से है। इसलिए पानी का एमपीएन जितना अधिक होगा, उतना ही अधिक मल प्रदूषण और स्वास्थ्य जोखिम होगा। इस रिपोर्ट से स्‍पष्‍ट है कि यमुना में घरेलू मलजल और औद्योगिक गंदे नालों के रासायनिक प्रदूषण से जल गुणवत्ता ‘सी’ वर्ग के मानकों से भी बहुत नीचे गिर चुकी है।

मानकों से काफ़ी ज्‍़यादा हैं प्रदूषक तत्व

एक रिपोर्ट के मुताबिक के अनुसार अधिकांश स्थानों पर मल-मूत्र से होने वाले प्रदूषण (फेकल कोलीफार्म) के साथ ही अन्य प्रदूषक तत्व मानक से ऊपर हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार मल मूत्र संबंधी प्रदूषण के प्रतीक ‘फीकल कोलीफॉर्म’ की मान्य सीमा प्रति 100 मिलीलीटर पर 500 एमपीएन है। इस स्‍तर तक पानी को सुरक्षित माना जाता है। जबकि, यह स्तर 2500 एमपीएन पहुंचने पर पानी को उपयोग लायक नहीं माना जाता है। 

गुणवत्ता मानकों के खतरनाक स्तर
रिपोर्ट में विभिन्‍न नमूनों में फीकल कोलीफॉर्म का स्‍तर औसतन इस प्रकार पाया गया है: पल्‍ला में160, आईटीबीपी पुल के पास 3800, आईटीओ ब्रिज के लिए 8000 और ओखला में 4200 एमपीएन/100 एमएल। इसी प्रकार जैव रसायन आक्सीजन मांग (बीओडी) का स्‍तर पल्‍ला में 3, आईटीबीपी पुल में 8, आईटीओ ब्रिज में 15 और ओखला में 30 मिलीग्राम/लीटर पाया गया। डिजॉल्‍व ऑक्‍सीजन (डीओ) का स्‍तर पल्‍ला में 6.1, आईटीबीपी पुल के लिए 4, आईटीओ ब्रिज पर 1.1 और ओखला में 0.3 मिलीग्राम/लीटर पाया गया। जबकि, मानकों के अनुसार पानी में बीओडी 3 मिलीग्राम (एमजी) प्रति लीटर या इससे कम और डीओ पा5 एमजी प्रति लीटर या इससे अधिक होना चाहिए। 

इस तरह दिल्‍ली में यमुना के पानी में सिर्फ पल्ला में, जहां यह दिल्‍ली में प्रवेश करती है, बीओडी तीन है, जिसे सही माना जा सकता है। ओखला में यह दस गुना बढ़कर 30 एमजी प्रति लीटर के स्‍तर तक पहुंच जाता है। इसी तरह से डीओ भी अधिकांश स्थानों पर मानक के अनुरूप नहीं है। इस तरह मानकों के आधार पर दिल्‍ली में यमुना नदी का पानी नहाने लायक भी नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है। रिपोर्ट में पाया गया कि दिल्‍ली के ज्‍़यादातर स्‍थानों पर यमुना में प्रदूषण का स्तर इतना अधिक है कि यह नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। दिल्‍ली में यमुना के प्रदूषण की चिंताजनक स्थिति को स्‍पष्‍ट करने वाली इस रिपोर्ट को विस्‍तृत रूप में इस चित्र में देखा जा सकता है-

दिल्‍ली प्रदूषण नियंत्रण समिति यानी डीपीसीसी की ओर से जारी हालिया रिपोर्ट यमुना के पानी में खतरनाक स्‍तर पर प्रदूषण होने की गवाही देती है।

तीनों राज्‍य यमुना की बदहाली के ज़िम्मेदार

देश की राजधानी दिल्‍ली में यमुना की बदहाली के लिए दिल्ली के लिए दिल्‍ली, हरियाणा और उत्‍तर प्रदेश एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ते नज़र आते हैं। पर, वास्‍तव में इसके लिए तीनों ही राज्‍य जिम्‍मेदार हैं। तीनों ही राज्यों में बड़ी मात्रा में औद्योगिक अपशिष्ट व सीवरेज नदी में गिर रहा है और बालू का अवैध खनन भी हो रहा है, जो स्थिति को और भी बिगाड़ रहा है। 

रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे अधिक लगभग 70% प्रदूषण हरियाणा के गुरुग्राम की तरफ से बहकर आने वाले नज़फगढ़ ड्रेन (साहिबी नदी) से होता है। इसी के चलते पल्ला व वजीराबाद में अपेक्षाकृत साफ रहने वाली यमुना नजफगढ़ ड्रेन के मिलने के बाद आइएसबीटी के पास बहुत अधिक दूषित हो जाती है। वजीराबाद में बीओडी 4 एमजी प्रति लीटर और फेकल कोलीफार्म 1700 है जो आईएसबीटी में बढ़कर 37 और 21000 हो जाता है। 

एसटीपी नहीं कर रहे काम
बहरामपुर और धनवापुर में इन नालों के पानी को साफ करने का संयंत्र है, लेकिन उनकी गुणवत्ता सही नहीं है। सेक्टर 107 में बन रहा संयंत्र अभी चालू नहीं हुआ है। दिल्ली जल बोर्ड ने नज़फगढ़ ड्रेन में गिरने वाले नालों के पानी को साफ करे के लिए 27 विकेंद्रीकृत सीवरेज उपचार संयंत्र (डीएसटीपी) बनाने को मंजूरी दी थी। इसमें से केवल 15 डीएसटीपी बनाने की प्रक्रिया ही अब तक शुरू हो पाई है। इनका निर्माण कार्य पूरा होने में भी अभी डेढ़ साल का वक्‍त है, वह भी काम सही समय पर पूरा होने पर ही ऐसा हो पाएगा। बाकी के 12 डीएसटीपी का मामला अभी अधर में है।
प्रदूषित यमुना के काले, दुर्गंध और झाग भरे पानी के बीच पूजा-अर्चना और अर्घ्‍य को भी अब शायद छठ व्रतियों ने परंपरा का हिस्‍सा मान लिया है। लिहाज़ा, इसी के बीच वह वे विधि-विधान से छठ की पूजा कर लेते हैं।

टेरी ने बताए ज़हरीले झाग से निपटने के तरीके 

ऊर्जा और संसाधन संस्थान (टेरी) की हालिया रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि यमुना में झाग का जिम्मेदार डिटर्जेंट और नालों से आने वाला गंदा पानी है। टेरी ने प्रदूषण की इस खतरनाक स्थिति से निपटने के लिए दिल्ली सरकार के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट और कार्य योजना भी तैयार की।

 इस रिपोर्ट में में झाग बनने के कारणों को बताते हुए इसे रोकने के लिए कई ठोस सुझाव दिए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक यमुना में झाग तब बनता है जब नदी में मौजूद गंदा पानी, डिटर्जेंट में पाए जाने वाले रसायन (सर्फेक्टेंट) और पानी की तेजी या अशांति आपस में मिल जाते हैं।  यमुना में गिरने वाले अनट्रीटेड नालों का सीवेज और फॉस्फेट वाले डिटर्जेंट झाग की सबसे बड़ी वजह हैं। 

यह समस्या ओखला बैराज के पास सबसे ज्‍़यादा देखने को मिलती है। इसे रोकने के लिए टेरी ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) को सुझाव दिया गया है कि वह पानी की जांच में अमोनिया और फॉस्फेट स्तर को भी शामिल करें। साथ ही, धोबी घाटों और कपड़े धोने वाले केंद्रों में छोटे-छोटे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाए जाएं और पर्यावरण-अनुकूल डिटर्जेंट को बढ़ावा दिया जाए। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के साथ मिलकर कम कीमत वाला फॉस्फेट-मुक्त, जिओलाइट या एंजाइम-आधारित डिटर्जेंट तैयार करने की कोशिश की जाए। 

झाग कम करने के लिए सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग (आईएफसीडी) से  ओखला बैराज के आसपास एरेटर (पानी में हवा मिलाने वाली मशीनें) लगाने की भी सिफारिश की गई है, जिससे पानी में ऑक्सीजन का स्तर बढ़े और झाग घटे। इसके अलावा टेरी ने नदी की रीयल-टाइम मॉनिटरिंग के लिए बैराज पर वेब कैमरे लगाने का सुझाव भी दिया है, ताकि झाग बनने और जलकुंभी फैलने की स्थिति पर नजर रखी जा सके।

यमुना तट पर पीएम के लिए बनाई ‘नकली यमुना’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छठ स्नान के लिए वासुदेव घाट पर बनाई गई 'नकली यमुना'। बताया जा रहा है कि इसे वज़ीराबाद वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से पाइप लाइन के जरिए फ़िल्टर किया गया पानी भर कर बनाया गया है।
छठ महापर्व को लेकर दिल्ली का राजनीतिक आरोपों का दौर भी चरम पर पहुंच गया है। आम आदमी पार्टी की दिल्ली इकाई के प्रमुख सौरभ भारद्वाज ने यमुना नदी की सफाई को लेकर सीएम रेखा गुप्‍ता की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी की दिल्‍ली सरकार पर जोरदार हमला बोला है। उन्होंने यमुना तट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्‍तावित छठ स्नान कार्यक्रम को लेकर भी तंज कसते हुए कहा है कि दिल्‍ली सरकार ने आनन-फानन में पीएम के लिए वासुदेव घाट पर 'नकली यमुना' बनाई है। इसके लिए यमुना के तट के एक हिस्‍से को बालू व मिट्टी डाल कर यमुना नदी से अलग कर दिया गया है। इस जगह पर तालाब खोद कर उसमें वजीराबाद वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से पाइप लाइन के जरिए फिल्टर पानी भरा गया है, ताकि पीएम मोदी प्रदूषित यमुना के बजाय गंगा के साफ-सुथरे पानी में स्‍नान कर सकें। उन्‍होंने कहा कि बिहार चुनावों के डर से यमुना को साफ-सुथरा दिखाने की लीपापोती की जा रही है। इसके लिए ईस्टर्न कैनाल का पानी रोककर हथिनीकुंड बैराज से यमुना में डाला जा रहा है, जिससे दिल्ली में यमुना का प्रवाह बना रहे और वह साफ दिखे।

रिकाॅर्ड मानसूनी बारिश से हुआ था सुधार, हालत फिर बिगड़ी

इस साल देश में मानसून में रिकाॅर्ड वर्षा होने से यमुना की गंदगी काफी हद तक बह गई थी। इससे उम्‍मीद जगी थी कि छठ पर शायर साफ-सुथरे पानी में पूजा करने को मिल जाए। पर, भारी मात्रा में गिर रहे अनट्रीटेड सीवेज के चलते कुछ ही दिनों में प्रदूषण का स्‍तर एक बार फिर से चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुका है। सरकार के तमाप प्रयासों के बावजूद कालिंदी कुंज में अब भी यमुना के पानी में अच्‍छी खासी मात्रा में झाग बन रहा है। 

इसे देखकर इस इलाके में यमुना में छठ पूजा करने वालों की चिंता बढ़ गई है। हालांकि, झाग दूर करने के लिए कालिंदी कुंज के पास रसायन का छिड़काव किया जा रहा है। साथ ही पानी का प्रवाह बढ़ा कर गंदगी को बहाने के लिए हरियाणा के हथनी कुंड से पूर्वी यमुना नहर और पश्चिमी यमुना नहर का पानी रोककर यमुना में डाला जा रहा है। 

इस तरह के कामचलाऊ उपाय से कुछ दिनों के लिए फौरी राहत मिल तो सकती है, बड़ा सवाल यह है कि क्‍या इससे नदी साफ होगी? वास्‍तव में यमुना को स्वच्छ व अविरल बनाने को बड़े स्‍तर पर उपचार और स्‍थायी उपायों की आवश्यकता है। इस दिशा में केंद्र सरकार व दिल्ली के साथ ही पड़ोसी राज्य हरियाणा व उत्तर प्रदेश को मिलकर काम करना होगा।

आस्‍था की डुबकी दे सकती है कई तरह की बीमारियां

यमुना के पानी में मौजूद कचरा, सीवेज औऱ कई तरह के टॉक्सिन सेहत के लिए काफी हानिकारक हैं। ऐसे में महिलाएं या अन्‍य छठ व्रती अगर यमुना नदी में डुबकी लगाते हैं, तो उन्‍हें कई तरह की बीमारियां और स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं हो सकती हैं। डॉक्टर मीरा पाठक ने ज़ी न्‍यूज़ को बताया कि यमुना नदी के पानी के संपर्क में आने के कारण स्किन इंफेक्श, एलर्जी खुजली, दाने और फोड़े जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती हैं। 

साथ ही, पेट दर्द, उल्टी बुखार, टाइफाइड, डायरिया और हेपेटाइटिस ए जैसी गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं। वहीं, पानी के आखों में के संपर्क में आने से आंखों में जलन, रेडनेस, पानी आने जैसी शिकायतें हो सकती हैं। प्रदूषित पानी में खड़े होने के चलते महिलाओं को यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, वेजाइनल डिस्चार्ज, यूरिन में जलन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही उपवास के चलते कमज़ोरी, थकान, चक्कर या बेहोशी जैसी समस्याओं के कारण स्थिति और भी खराब हो सकती है।

यमुना तट पर स्‍प्रे के जरिये नदी में उठ रहे झाग को खत्‍म करने की एक क़वायद।

कर सकते हैं बचाव के ये उपाय

नदी के पानी में उतरने या डुबकी लगाने से पहले शरीर पर नारियल या सरसों का तेल या वैसलीन लगाने से त्वचा को कुछ हद तक सुरक्षा मिल सकती है और पानी के संपर्क में आने से होने वाली समस्याओं से बचा जा सकता है। शरीर के ज्‍़यादातर भाग को ढक कर रखने की कोशिश करें, ताकि पानी का संपर्क कम हो। 

साथ ही पानी को आंखों, नाक और मुंह में न जाने दें। ऐसा करने से गंभीर बीमारियों के खतरे को कम किया जा सकता है। पूजा के दौरान अपने साथ पीने और मुंह, हाथ-पांव आदि धोने के लिए साफ पीने का पानी रखना न भूलें। कम से कम समय में पूजा करके पानी से बाहर आने का प्रयास करना चाहिए। पूजा के बाद गीले कपड़ों में देर तक न रहें और जल्‍द से जल्‍द साबुन व साफ पानी से नहाकर कपड़े बदल लेना बेहतर होगा, ताकि नदी के पानी में मौजूद प्रदूषक तत्‍वों और टॉक्सिन्स का प्रभाव खत्‍म किया जा सके। 

घाट पर पूजा के दौरान अपने पास एक हाइजीन किट रखना भी अच्‍छा रहेगा, जिसमें एंटीसेप्टिक वाइप्स, एंटीफंगल पाउडर, हैंड सैनिटाइजर, कोई एंटीसेप्टिक लिक्विड होना चाहिए। पूजा के बाद तुरंत एंटीसेप्टिक वाइप्स से हाथ-पैर पोंछ लें और सैनिटाइजर का उपयोग करें। नहाने के लिए साफ पानी में एंटीसेप्टिक लिक्विड की कुछ बूंदें मिलाना फायदेमंद रहेगा। खुजली या जलन महसूस होने पर साफ पानी से नहाने के बाद त्वचा पर एंटीफंगल पाउडर लगाएं। प्रसाद ग्रहण करने या कुछ भी खाने-पीने से पहले हाथों को अच्छी तरह सैनिटाइज करना न भूलें, ताकि बैक्‍टीरिया पेट में न जाने पाएं और पेट से संबंधित कोई बीमारी न हो।

लीजिए छोटा सा ये संकल्‍प: यमुना की यह बदहाली तो अनट्रीटेड नाले के सीवेज और उद्योगों के ज़हरीले रसायनों के कारण हुई है, पर छठ पूजा के बाद घाटों पर भी काफी गंदगी देखने को मिलती है। घाटों की यह दुर्दशा पूजा करने आए लोगों द्वारा कूड़ा-करकट छोड़ जाने के कारण होती है। आइए, संकल्‍प करें इस बार छठ पूजा के बाद एक घंटे का वक्‍त घाट की सफाई के लिए देंगे। इस एक घंटे में श्रमदान करके अपनी और अन्‍य लोगों की फैलाई गई गंदगी को साफ कर घाट को साफ-सुथरा बनाएंगे।
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