बावडी: कुछ अनछुए पहलू

भारत में जल संकट गरीबी की रेखा की तरह है। इस देश में हर साल जितने क्षेत्रों को जल संकट से बाहर निकाला जाता है उससे कहीं अधिक क्षेत्र उसके दायरे में जुड जाते हैं। पुराने क्षेत्रों में भी जलसंकट लौट-लौट कर आता रहता है। यह पानी पर काम करने वाले विभागों, स्वयं सेवी संस्थाओं तथा विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थाओं के लगातार प्रयासों के चलते हो रहा है। ज्ञातव्य है कि आजादी के बाद से अब तक पानी पर 3.5 लाख करोड़ से अधिक की राशि व्यय की गई है। मनरेगा के अंतर्गत कुल 123 लाख से भी अधिक जल संरक्षण संरचनाएँ
डाउन टू अर्थ और अनिल अग्रवाल एनवायरमेंट ट्रेंनिंग इंस्टीट्यूट (एएईटीआई) दोनों के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी पत्रकारों के लिए ऑनलाइन ट्रेनिंग कोर्स का आयोजन किया जा रहा है। पत्रकारों की स्टोरी को विश्वसनीय बनाने में आंकड़ों और डेटा की काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। डेटा की मदद से हम संवाद को तथ्यात्मक बना सकते हैं।
भारत में जल संकट गरीबी की रेखा की तरह है। इस देश में हर साल जितने क्षेत्रों को जल संकट से बाहर निकाला जाता है उससे कहीं अधिक क्षेत्र उसके दायरे में जुड जाते हैं। पुराने क्षेत्रों में भी जलसंकट लौट-लौट कर आता रहता है। यह पानी पर काम करने वाले विभागों, स्वयं सेवी संस्थाओं तथा विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थाओं के लगातार प्रयासों के चलते हो रहा है। ज्ञातव्य है कि आजादी के बाद से अब तक पानी पर 3.5 लाख करोड़ से अधिक की राशि व्यय की गई है। मनरेगा के अंतर्गत कुल 123 लाख से भी अधिक जल संरक्षण संरचनाएँ
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